मनोज्ञान – ‘मन की चमक मन की रचनाओं के रूप में बाहर आती है!’ केके
Manogayan KK :
हर एक मन रचनात्मक होता है! और मन की चमक अर्थात रौशनी किसी न किसी तरह की रचना के रूप में ही बाहर आती है। परन्तु मन की ऐसी रचनात्मकता तभी बाहर आ पाती है जब वह मन एक ऐसी दृष्टि पैदा कर लेता है जो किसी भी तरह की बुरी स्थिति में भी कुछ ना कुछ सुन्दर देख ही लेता है।
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इंग्लैंड के प्रसिद्ध लेखक जॉन रस्किन एक समारोह में गए। उनके पास बैठी युवती के हाथ में एक सुंदर रुमाल था। उसे वह उपहार में मिला था। अकस्मात उस रुमाल पर कुछ गिर गया। उस पर गहरा धब्बा हो गया। वह इससे परेशान हो गयी। बगल में बैठे रस्किन ने उस लड़की से कहा कि कुछ देर के लिए अपना धब्बे वाला रुमाल मुझे दे दो। युवती ने जॉन रस्किन को रुमाल दे दिया। रस्किन बड़े चित्रकार भी थे। वे रुमाल लेकर एकांत में गए और थोड़ी देर में उस लड़की को रुमाल लौटा दिया। लड़की रुमाल देख कर बोली, “यह मेरा नहीं है। मेरे रुमाल पर तो धब्बा था।” रस्किन ने मुस्कराते हुए कहा, ” बहन, यह वही धब्बों वाला रुमाल है। तुम देखो जिस जगह धब्बा था वहां उसी के सहारे एक सुंदर चित्र बना दिया गया है।” युवती ने जब ध्यान से देखा तो अपना रुमाल और भी सुंदर रूप में देखकर खुश हो गई। जॉन रस्किन बोले, “हम अपने व्यक्तित्व के धब्बों को भी इसी तरह सुंदरता में बदल सकते हैं।”
केके
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