मनोज्ञान – ‘मैं भारत के लिए अपना सब कुछ क़ुर्बान कर दूँगा’ की सोच ने ही भारत को ‘बेहतरीन कलाम’ दे दिया!’ केके
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“जो लोग जिम्मेदार, सरल, ईमानदार और मेहनती होते हैं, उन्हे ईश्वर द्वारा विशेष सम्मान मिलता है क्योंकि वे इस धरती पर उसकी श्रेष्ठ रचना हैं।” भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर ए. पी. जे. अब्दुल कलाम साहब की ये सोच ही ‘मैं भारत के लिए अपना सब कुछ क़ुर्बान कर दूँगा’ को साबित कर देती है। “सरलता और परिश्रम का मार्ग अपनाओ, जो सफलता का एक मात्र रास्ता है।” उनका ये विचार उनकी पूरी ज़िन्दगी की दास्ताँ बयां कर रहा है। “सपने देखना जरूरी है, लेकिन सपने देखकर ही उसे हासिल नहीं किया जा सकता।
सबसे ज्यादा जरूरी है कि जिंदगी में खुद के लिए कोई लक्ष्य तय करना।” उन्होंने ये शिक्षा केवल दूसरों को ही नहीं दी है बल्कि उनके अपने जीवन में इसे देखा जा सकता है। “दूसरों का आशीर्वाद प्राप्त करो, माता-पिता की सेवा करो, बड़ों का और शिक्षकों का आदर करो। अपने देश से प्रेम करो। इनके बिना जीवन अर्थहीन है।” ये ही हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर ए. पी. जे. अब्दुल कलाम साहब की ज़िन्दगी का सार है जो हर एक इंसान को प्रेरित करता है।
कलाम साहब ने एक बार बच्चों को अपने बचपन की एक घटना बताई थी। उन्होंने बच्चों से कहा कि – जब मैं छोटा बच्चा था तब रोज़ मेरी मां हम सब के लिए खाना बनाया करती थी। एक रात की बात है, मां ने सब्जी-रोटी बनाई और पिताजी को परोस दी। मैंने देखा रोटी बिलकुल जली हुई थी। मैं ये सोच रहा था कि किसी ने ये बात नोटिस की या नहीं। मेरे पिता ने वो रोटी बिना कुछ कहे प्रेम से खा ली और मुझसे पूछा – बेटा आज स्कूल का दिन कैसा रहा? मुझे याद है कि मेरी मां ने उस दिन जली रोटी बनाने के लिए पिताजी से माफी मांगी थी।
जिस पर पिताजी ने हंसते हुए कहा था। चिंता मत करो – मुझे जली रोटियां भी पसंद हैं। बाद में जब मैंने पिताजी से पूछा – क्या आपको जली रोटियां सच में पसंद हैं। तब पिताजी ने ना में सर हिलाते हुए कहा – एक जली हुई रोटी किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकती, लेकिन जले हुए शब्द बहुत कुछ बिगाड़ सकते हैं। और उन्होंने उनके पिताजी से ये बात न केवल सीखी बल्कि उन्होंने आगे चलकर ये सिखाया कि, “देना सबसे उच्च और श्रेष्ठ गुण है, लेकिन उसे पूर्णता देने के लिए उसके साथ क्षमा भी होनी चाहिए।”
जब अब्दुल कलाम साहब का चयन राष्ट्रपति के रूप में हो गया तो कलाम सर ने तुरंत एक चैरिटी को फोन किया और अपनी जीवन भर की जमापूंजी दान कर दी और कहा कि आज से मेरा ध्यान तो भारत सरकार रख रही है इसलिए अब जो भी मेहनताना मिलेगा उसे भी हम दान कर देंगे। कलाम साहब कई बार बताते थे कि ‘सबसे उत्तम कार्य क्या है!’ उन्होंने कई बार कहा कि, “किसी भूखे को भोजन कराना, जरुरतमन्द की बेहिचक मदद करना, इन्सान के रूप में दूसरों के लिए काम आना और हर एक दुःखी व्यक्ति की सेवा करना ही सबसे उत्तम पूण्य देने वाला कार्य होता है।”
अतः भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर ए. पी. जे. अब्दुल कलाम साहब की ज़िन्दगी की हर एक बात में एक ही बात झलकती है और वो है ये – ‘मैं भारत के लिए अपना सब कुछ क़ुर्बान कर दूँगा’ और उनकी इसी सोच ने उन्हें भारत का ‘बेहतरीन कलाम’ बना दिया!
केके
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