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एक गुरु अपने शिष्यों के लिए औषधि खोजने जंगल में गए। शिकार के लिए एक शिकारी भी वहां गया हुआ था। और एक सैनिक भी जंगल में रास्ता भटक गया था। तीनों को प्यास लगी। उन तीनों को दूर कहीं एक झोंपड़ी दिखाई दी। जिसमें एक अंधा भिक्षु बैठा था। शिकारी वहां पहुंचा और बोला, “ऐ अंधे, मुझे पानी पिला दे वरना तीर से तेरा जलपात्र फोड़ दूंगा।” अंधा बोला, “चल भाग यहां से शिकारी कहीं का, नहीं पिलाना पानी।”
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उसी के पीछे सैनिक आया और बोला, “अंधे, पानी पिलाकर मेरी प्यास बुझा। चाहे तो धन और वस्त्र ले ले।” अंधे व्यक्ति ने चिढ़कर कहा, “राजा का सैनिक है, मुझे लोभ दिखाता है, जा नहीं मिलेगा पानी।” तब तक गुरु जी भी वहां पहुंच गए थे, उन्होंने कहा, “सूरदास जी, थोड़ा-सा पानी प्रदान करें, तो बड़ी कृपा होगी। प्यास से प्राण संकट में आ गए हैं।” अंधा बोला, “मेरा सौभाग्य है कि आप मेरी कुटिया में पधारे। लीजिए जल ग्रहण कीजिए।”
पानी पीकर गुरु ने कहा, “आप देख नहीं सकते, फिर यह कैसे जान गए कि पहले आया व्यक्ति शिकारी, दूसरा सैनिक तथा तीसरा मैं एक साधु?” अंधा बोला, “गुरु जी, “बोलचाल से ही इंसान की पहचान हो जाती है। और एक इंसान वैसा ही बन जाता है जैसा वो उसके मन को देता है!” गुरु ने उससे विनती की, “आप इन दोनों को भी पानी पिला दीजिए, ताकि इनके मन की भी आँख खुल जाएं।”
इस प्रकार एक अन्धा इंसान भी किसी के बोलने से यह जान लेता है कि कौन क्या है! मन जिस तरह के भाव प्रकट करता है उसे वही मिले होते हैं और ये हर एक व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वो अपने मन को क्या देता है। मन को मिलने वाले ये भाव शब्दों के रूप में होते हैं जो वो पढ़ता है, सुनता है और बोलता है!
केके
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