मनोज्ञान – ‘जिस मन में ईर्ष्या, छल-कपट, या द्वेष रहता है, वह उसकी शारीरिक भाषा अथवा शाब्दिक भाषा में दिखता है!’ केके
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मन का यह प्राकृतिक स्वभाव है कि वह उसकी सकारात्मक या नकारात्मक सोच के प्रभाव को कितना ही छुपाना चाहे परन्तु उस सोच का प्रभाव उसकी शारीरिक भाषा (बॉडी लैंग्वेज) अथवा शाब्दिक भाषा (स्पोकन लैंग्वेज) में दिखता ही है। और ऐसा प्रभाव न केवल शारीरिक अथवा शाब्दिक भाषा में दिखता है बल्कि शरीर पर, सकारात्मक या नकारात्मक, अपना प्रभाव भी छोड़ता है। एक बार चीन के दो व्यक्तियों ने बाजार में साथ-साथ दुकानें खोलीं। दोनों दुकानें धड़ल्ले से चलने लगीं। वहाँ ग्राहकों की भीड़ लगी रहती और दोनों की अच्छी-खासी कमाई होती।
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वे बड़े मजे में रहने लगे। लेकिन यह हँसी-खुशी ज़्यादा दिन नहीं चल सकी। वे दोनों दुःखी रहने लगे। धीरे-धीरे कमज़ोर हो गये और उन्हें कितनी ही बीमारियों ने घेर लिया। वे उन बीमारियों के लिए हकीमों और चिकित्सकों के घर पर चक्कर काटने लगे। लेकिन उनका इलाज कारगर नहीं हुआ। वे मौत की घड़ियाँ देखने लगे। इस प्रकार काफी समय गुजर गया। तब एक व्यक्ति ने उन दोनों को कन्फ्यूशियस के पास जाने की सलाह दी।
वे दोनों दार्शनिक कन्फ्यूशियस के पास पहुँचे। कन्फ्यूशियस ने दोनों की व्यथा को सुना। वे उन दोनों की अन्तर्स्थिति को समझ गये। वे सामने वाले की बढ़ोतरी सहन नहीं कर पाते और मन ही मन कुढ़ते रहते। यही उनकी बीमारी का प्रमुख कारण था। तब कन्फ्यूशियस बोले – “तुम दोनों अपनी-अपनी दुकान बदल दो और मालिकी ईश्वर की समझें, फिर दोनो स्वस्थ हो जाओगे। “दोनों ने कन्फ्यूशियस के कहे अनुसार यह कार्य किया तो ईर्ष्या के बिना वे दोनों निरोगी हो गये।
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